अमर होने की यौगिक साधनाएं (How to become Immortal)
आज के इस कलयुग में हर व्यक्ति लम्बी उम्र तक जीना चाहता है कोई भी व्यक्ति जल्दी मरना नहीं चाहता है अमर होने के वरदान तो स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश सतयुग, त्रेतायुग में दिया करते थे लेकिन जैसे जैसे
द्वापरयुग की शुरुआत होई देवताओ ने अमर होने के वरदान देना बंद कर दिए।
द्वापरयुग की शुरुआत होई देवताओ ने अमर होने के वरदान देना बंद कर दिए।
इस कलयुग में अमर होना मानो नामुमकिन सा है लेकिन कुछ ऐसी यौगिक साधनाये है जिनके द्वारा हम अमरत्व को प्राप्त कर सकते है।
1- प्राणायाम द्वारा वायु स्वरूप होकर मृत्यु पर विजय
जब भगवती पार्वती जी ने शिव जी से प्रश्न किया कि योगी काल को अच्छी तरह जीतकर "वायु स्वरूप " कैसे हो जाता है ? तब श्री महामृत्युंजय भगवान शंकर जी ने उत्तर दिया
हे देवि ! अपने योग सामर्थ्य से मृत्यु का दिन जानकर, प्राणायाम में तत्पर योगी आधे महीने में ही काल को जीत लेता है । हृदय में स्थित रहने वाला वायु, सदा अग्नि को प्रदीप्त करता है । अग्नि के पीछे चलने वाला वह महान और सर्वगामी वायु, भीतर और बाहर सभी जगह व्याप्त है । ज्ञान,विज्ञान और उत्साह, इन सब की प्रवृत्ति वायु से होती है। जिसने इस लोक में साधना के द्वारा वायु को जीत लिया, उसने यह सम्पूर्ण जगत को जीत लिया।
साधारणता योगी को सम्यक धारणा के ध्यान में तत्पर रहकर उसे जरा - मृत्यु के विनाश की इच्छा से सदा लगे रहना चाहिए । जिस प्रकार लोहार वायु के द्वारा धौकनी को फुलाकर अपना कार्य सिद्ध करता है, उसी प्रकार योगी को भी अभ्यास करना चाहिए ।
प्राणायाम के समय जिनका ध्यान किया जाता है, वे परमेश्वर -- सहस्त्रों मस्तक, नेत्रों, पैरों और हाथों से युक्त है और समस्त ग्रंथियों को आवृत करके उनसे भी दस अंगुल आगे स्थित है । प्राण वायु को नियंत्रित करके व्याह्रति पूर्वक तीन बार गायत्री मंत्र का शिरोमन्त्र सहित जाप करे । चन्द्र सूर्य आदि ग्रह भी आते जाते रहते है परन्तु प्राणायाम पूर्वक ध्यान में तत्पर योगी आज तक कभी नहीं लौटे -- अर्थात वे कैवल्य पद को प्राप्त हो
गए । जो सदा आलस्यरहित होकर एकांत में प्राणायाम करता है , वह जरा और मृत्यु को जीतकर ,वायु के समान गतिशील होकर आकाश में विचरण करता है । वह सिद्ध पुरुष का रूप, कांति, मेधा, पराक्रम, और शौर्य को भी प्राप्त कर लेता है ।
2- अग्नि तेज की सिद्धि से
शांत और एकांत स्थान में सुखासन पर बैठकर, दाहिने और बाएं दोनो नेत्रों की कांति से प्रकाशित दोनों भौहों के मध्य भाग में, बाल सूर्य के समान "अग्नि तेज" अव्यक्त रूप से प्रकाशित होता है, उसे चिंतन करने पर निश्चय ही देखा जा सकता है । यत्न पूर्वक नेत्रों को हाथ की अंगुलियों से दबाकर, उसके तारों को देखते हुए आधा मुहूर्त तक इसका ध्यान करें । उसके बाद ध्यान करते हुए योगी को ,अंधकार में श्वेत, रक्त, पीत, कृष्ण तथा इंद्रधनुष के समान कांति वाला ईश्वरीय तेज दिखाई देता है । निरन्तर अभ्यास के योग से, इससे परकाया प्रवेश, अणिमादिक सिद्धियां, दूर सुनने और अदृश्य हो जाने की भी शक्ति आ जाती है । इस प्रकार योगी मृत्यु का अतिक्रमण कर मुक्त हो जाता है ।
3- अमृत बिन्दु के पान करने की सिद्धि से
इसमें स्थिर चित्त वाले योगी, आसन पर स्थित होकर, शरीर को दोनो हाथों से ऊंचा उठाकर ,चोंच के आकार वाले मुख से धीरे धीरे वायु का पान करते हैं । थोड़ी देर में तालू में स्थित जीवनदायी जो जलबिंदु टपकने लगते हैं , उन अमृत के समान शीतल जल बिन्दुओं को प्रतिदिन वायु से ग्रहण करके , पीने वाला योगी मृत्यु के वशीभूत नहीं होता है और वह दिव्य शरीर वाला , महातेजस्वी और भूख प्यास से रहित हो जाता है तथा देवताओं के 100 वर्ष तक जीता है ।
इसकी एक और विधि भी भगवान भोलेनाथ ने बताई। योगी अपनी जीभ को सिकोड़कर तालू में लगाने का प्रयास करे तो जीभ कुछ समय बाद लम्बी हो जाती है । तब तालू से स्पृष्ट हुई वह जिव्हा, शीतल अमृत का श्राव करने लगती है, उसको निरन्तर पीता हुआ योगी अमरत्व को प्राप्त कर लेता है । संसार को तारने वाले पाप नाशक काल से बचाने वाले अमृत सार से जिसने अपने शरीर को आप्लावित कर लिया, वह भूख प्यास से रहित होकर अमर हो जाता है ।
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