क्या हैं 84 लाख योनियों का सच (What is the truth of 84 Lakh Yoni)
हमारे हिन्दू धर्म में माना जाता हैं कि आत्मा को 84 लाख योनियों से गुजरने के बाद मनुष्य का शरीर मिलता है इसलिए हमे अपने मनुष्य रूपी जीवन का उपयोग अच्छे कर्म करके जीवन निर्वाह करना चाहिए।तो आखिर ऐसा कैसे संभव है कि आत्मा को 84लाख योनियों के बाद मनुष्य का जन्म मिलता है।
आज हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे मनुष्य को 84 लाख योनियों के जन्म से गुजरकर मानव रूपी जीवन मिलता है और जब यह मानव योनि इतनी मुश्किल से मिलती तो इस मनुष्य रूपी योनि में हमे क्या क्या कर्म करना चाहिए।
पद्म पुराण में एक श्लोक है जिसमें 84लाख योनियों के बारे में वर्णन से बताया गया है जिसमें से नौ लाख चौरासी हजार जलचर योनियां अर्थात पानी में रहने वाले पशु और सात लाख पेड़ - पौधे और ग्यारह लाख फल और तीस लाख पशु व चार लाख मानवी नसल है लिहाजा ऐसे 84 लाख योनिया है।
वो पद्म पुराण ही है जो कहती है कि मनुष्य को मानव जीवन 84 लाख योनियों के बाद मिलता है।
दूसरी बात जोकि हम हमारे पूर्वजों के समय से सुनते आए है की मनुष्य को मानव जीवन दुबारा नहीं मिलता है।
ऐसा कही नहीं लिखा है कि मानव को दुबारा मनुष्य का जीवन नहीं मिलता और ना ही ऐसा कही लिखा है कि मनुष्य को 84 लाख योनियों के बाद मानव शरीर मिलता है सिर्फ यह बातें पद्म पुराण में वर्णित की गई है।
अगर मनुष्य अच्छे कर्म करता है तो उसे स्वर्ग मोक्ष का मार्ग मिलता है यदि मनुष्य पाप करता है तो उसे नर्क लोक की सजा भोगनी पड़ती हैं और मनुष्य जैसे कर्म करता है उसे वैसी है योनियों में जन्म मिलता है यह बात चाणक्य द्वारा कहे गए श्लोक में पता चलती है जिसमें चाणक्य कहते है कि नष्ट हुए धन फिर से प्राप्त हो सकता है बिछड़ा हुए मित्र फिर से मिल सकता है लेकिन मनुष्य जीवन सिर्फ एक बार ही मिलता हैं मनुष्य जन्म बेहद दुर्लभ है जोकि चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से समझाने कि कोशिश करते हैं।
अचार्य चाणक्य ही नहीं बल्कि राम चरित मानस और पद्म पुराण में भी मनुष्य जीवन के बारे में समझाने कि कोशिश की गयी है।
मानव शरीर त्यागने के बाद हमें दोबारा मानव शरीर इसलिए नहीं मिलता है क्योंकि 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य ही ऐसी योनि है जिसमें सोच समझकर कर्म करने की इच्छा शक्ति है। केवल मानव ही समझ सकता है कि स्वर्ग क्या है और नर्क क्या है और मानव ही सच और झूठ में फर्क कर सकता है और सिर्फ मनुष्य ही होता जो सिर्फ ये जान सकता कि अच्छा और बुरा क्या है वहीं धर्म और पाप में फर्क जान सकता है वह केवल मनुष्य ही है जिसको परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग मालूम होता है और सिर्फ मानव ही आत्मा का रहस्य जान सकता है इसलिए मानव जब अपने जीवन का त्याग कर देता है तो उस मानव को उसके कर्म के अनुसार ही अगली योनि में जन्म मिलता है और उस योनि में मानव को सोचने और समझने की क्षमता नहीं होती है और वो ऐसी ही योनियों में फसता चला जाता है और जितना आप इन योनियों में जन्म लेते चले जाते है उतना ही मनुष्य रूपी योनि उनसे दूर होती चली जाती हैं इसलिए ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य को 84 लाख योनियों को पार करने के बाद ही मनुष्य रूपी योनि प्राप्त होती हैं।
पद्म पुराण के अनुसार विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई है और इस कर्म के पेड़ पौधे पशु पक्षी आदि इस कर्म में जुड़े हुए हैं लेकिन उनमें उस चेतना की अभिव्यक्ति नहीं हुई जो मनुष्य में है और
वो ब्रह्मा का साक्षात्कार में सक्षम है यानी कि वो मानव ही है जो ईश्वर की प्राप्ति के लिए मार्ग खोज सकता है। इसलिए पद्म पुराण, रामचरितमानस और चाणक्य के श्लोकों में मनुष्य जीवन के महत्व को समझाने कि कोशिश की है कि मनुष्य जीवन कितना अनमोल होता है इसलिए हमे सोच समझकर ही कर्म करना चाहिए।
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