शिवजी को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाया जाता है? (Shiv Ji Ko Shankh Se Jal Kyu Nhi Chadhaya Jata Hai)
हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी देवी देवताओं को प्रसन्न करने व उनकी आराधना करने का विशेष महत्त्व व तरीको का वर्णन उपलब्ध हैं। कुछ ऐसी सामग्री और विधियां होती हैं जो विशेष तौर पर अपने आराध्य प्रभु को प्रसन्न करने के लिए ही अर्पित की जाती है जो उनको काफी प्रिय होती है इस समाग्री को अर्पित कर यदि हमारे आराध्य प्रसन्न हो जाए तो हमें मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं। लेकिन हमारी थोड़ी सी चूक या कुछ गलत समाग्री अर्पण करने की वजह से ये हमारी पूजा का गलत परिणाम देते है जिसके कारण हमें व हमारे परिवार को इस गलती का परिणाम भुगतना पड़ता है यहां कुछ चीज देवी देवताओं को पसंद आती तो वहीं कुछ चीजे उन्हें कतई पसंद नहीं आती है ऐसे में अगर उन्हें वह सामग्री अर्पित की जाए तो यह हमारी समस्या का कारण बन सकता है।
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भगवान शिव जिन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता और जोकि इस सृष्टि के विनाशक भी है जहां वे अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न भी होते तो क्रोध के कारण बहुत जल्दी रौद्र रुप भी धारण कर लेते हैं भगवान शिव जी को भांग धतूरे का चढ़ावा बहुत पसंद है लेकिन कुछ ऐसी समाग्री भी है जिसका प्रयोग हमें शिव आराधना के दौरान बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
शिव पुराण के अनुसार शिव भक्त को कभी भी वो चीज शिव जी को नहीं अर्पित करनी चाहिए जो शिवजी को पसंद नहीं होती है। सभी जानते है कि, पौराणिक कथाओं के मान्यता अनुसार विष्णु और लक्ष्मी जी को शंख का जल कितना प्रिए हैं और शिव जी के आलावा सभी देवी देवता कि पूजा में भी शंख का उपयोग किया जाता हैं।लेकिन शिव जी शंख से जल चढ़ाना निषेध बताया गया है इस संबंध में शिव पुराण में एक कथा भी बताई गई हैं।
शिव पुराण के अनुसार शंख चूड नाम का महादेेत्य हुआ करता था, शंखचुड दंभ का पुत्र था। जब बहुत समय तक दंभ को सन्तान सुख की प्राप्ति न हुई तब उसने भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की कठिन तपस्या की उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु और लक्ष्मी जी ने उसे दर्शन दिए और विष्णु जी ने उसे वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीन लोकों के लिए अजेय, महापरिक्रमी और तेजस्वी शूरवीर पुत्र का वर मांगा।
श्री हरी विष्णु और लक्ष्मी माता उसे तथास्तु बोलकर वहाँ से अन्तर्ध्यान हो गए तब दंभ के यहां उसकी इच्छानुसार मांगे हुए वर के अनुसार पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम शंखचूड पड़ा।
शंखचूड़ ने पुष्कर में ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और अपनी तपस्या से ब्रम्हा जी को प्रसन्न कर लिया तब ब्रम्हा जी ने उसे वर मांगने के लिए कहा तब शंख चूड़ ने वर मांगा कि वह सभी देवताओं के लिए अजेय हो जाए ब्रम्हा जी ने उसे तथास्तु बोला और उसे श्रीकवच दिया साथ ही ब्रम्हा जी ने उसे धर्मस्व की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी फिर वे अन्तर्ध्यान हो गए।
ब्रम्हा जी की आज्ञानुसार तुलसी से शंखचूड़ ने विवाह कर लिया ब्रम्हा और विष्णु के वरदान के कारण उसने तीनों लोको पर अपना स्वामित्व स्थपित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर श्री हरी विष्णु से मदद मांगी परन्तु उन्होने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था। अतः उन्होंने शिव जी से प्रार्थना कि तब शिव जी ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परन्तु श्रीकवच और तुलसी के पतिव्रता धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब शिवजी ने विष्णु से ब्राम्हण रूप बनाकर शंखचूड़ से उसका श्रीकवच दान में ले लिया उसके बाद विष्णुजी ने शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शेळल का हरण कर लिया। तब शिवजी ने देत्यराज शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियो से शंख का जन्म हुआ।
क्योंकि शंख चूड़ विष्णु और लक्षमी भक्त था अतः विष्णु और लक्ष्मी जी को शंख का जल अत्यंत प्रिए है और सभी देवताओं को भी शंख से जल चढाने का विधान है।
परन्तु शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया था अतः शंख का जल शिवजी को चढाना निषेध बताया गया है इसी वजह से शिवजी को शंख से जल अर्पित करना निषेध बताया गया है। और अगर कोई ऐसा करता है तो शिव जी की कृपा से वह व्यक्ति वंचित हो जाता है ।
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