कैसे प्रकट हुआ था केदारनाथ का शिवलिंग (How the Shivling of Kedarnath was revealed)
केदारनाथ मंदिर के शिवलिंग की कथा हमारे महाभारत काल से जुड़ी है।
तो आज हम आपको बताएंगे कि कैसे भगवान शिवजी जी केदारनाथ में त्रिकोण नाथ शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
महाभारत काल के पांचों पांडवो ने यहां कठोर तप किया था जिसके बाद शिवजी ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए थे।
महाभारत काल के युद्ध के पश्चात् पांडवो ने अपने सबसे बड़े भ्राता युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के राजा के रूप ने चुना और उनका राज्याभिषेक किया गया कहा जाता है युधिष्ठिर ने चार दशक तक हस्तिनापुर पर राज्य किया था और उसके बाद वहां का राज्य युधिष्ठिर के पुत्र परीक्षित को सौंपकर सारे पांडव और उनकी पत्नी मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वर्ग लोक जाने के लिए निकल गए।
बात उस समय की गई जब एक दिन सभी पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण के पास बैठकर महाभारत काल के युद्ध की समीक्षा कर रहे थे उस समीक्षा के दौरान पांडवो में श्रीकृष्ण से कहा कि हे नारायण हम लोगो ने बन्धु हत्या के साथ ब्रह्म हत्या का भी पाप लगा है अब हम पांचों पांडवो को इस हत्या से दोष हटाने के लिए कोई उपाय बताइए जिससे हमारे ऊपर से ये ब्रह्म हत्या का पाप हट जाए तभी श्रीकृष्ण कहते है कि हे पांडवो यह बात बिल्कुल सच है कि युद्ध भूमि में जीत तुम्हारी हुई है लेकिन तुम्हारे ऊपर मित्र बन्धु और गुरु हत्या का पाप लगा है अतः तुम्हे इस हत्या ये कारण मुक्ति नहीं मिलेगी और इस पाप से मुक्ति के लिए तुम्हे भगवान शिवजी की शरण में जाना चाहिए और यह बाते करके श्रीकृष्ण द्वारका लौट गए लेकिन पांचों पांडव अपने ऊपर से इस हत्या का पाप हटाने के लिए बहुत चिंतित हो गए थे और सोचने लगे कि कब हम अपना राज्य पाठ त्याग कर मुक्ति के लिए उपाय खोजने लगे और कुछ ही दिनों बाद पांडवो को पता चला कि वासुदेव भी अपना शरीर का त्याग कर अपने धाम को लौट गए और अब पांडवो को भी भगवान श्रीकृष्ण के बगैर धरती लोक पर रहना असंभव लग रहा था मित्र गुरु और पिता सभी युद्ध में चल बसे थे माता ज्येष्ठ पिता राज पाठ को छोड़कर वन कि तरफ गमन कर चुके थे और उनके मार्गदर्शन करने वाले श्रीकृष्ण भी अपने लोक को जा चुके थे ऐसे में अब पांडव भी बहुत परेशान हो चुके थे अंत में उन्होंने अपना सारा राज पाठ परीक्षित को सौंपकर भगवान शिव जी की खोज में पांचों पांडव और उनकी पत्नी द्रौपदी के संग निकाल पड़े।
हस्तिनापुर से निकलने के बाद वे काशी पहुंचे लेकिन उन्हें वहां भी शिवजी के ना दर्शन हुए ना वे उन्हें मिले उसके बाद उन पांचों पांडवो ने जहां जहां शिवजी को खोजा वहां से शिवजी चले जाते ऐसा क्रम लगातार चलता रहा अंत में सभी पांडव और पत्नी द्रौपदी शिवजी को खोजते खोजते हिमालय कि गोद में जा पहुंचे लेकिन यहाँ भी जैसे ही पांडव पहुंचे भगवान शिवजी वहां से छुप गए लेकिन सबसे बड़े पांडव ने भगवान शिव जी को वहां छुपते हुए देख लिया तब युधिष्ठिर ने कहा कि हे प्रभु आप कितना भी हम से छुप जाए लेकिन हम आपके दर्शन को पाकर रहगें तभी यह कहकर पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे लेकिन तभी शिवजी पीछे से एक बैल का रूप धारण करके वहाँ आते है और पांडवो को जोर से अपनी सींघो से उछाल कर फेंक देते है और जिससे उस बैल का सिर चट्टानों में धस जाता है और अन्दर की तरफ़ घुस जाता है यह देखकर भीम उस बैल की पूंछ को पकड़कर उसको खींचने लगे उस बैल को खींचने की वजह से उसका सिर धड़ से अलग हो गया और धरती पर जा गिरा और शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गया और तभी वहां शिवजी प्रकट हुए और उन पांचों पांडव को दर्शन देकर उन्हें उनके पापो से मुक्ति दिलवाई।
शिवजी के दर्शन देने के पश्चात पांचों पांडवो को मुक्ति का मार्ग बता कर वे वहा से अन्तर्ध्यान हो गए तभी पांचों पांडव ने उस शिवलिंग की पूजा अर्चना की तभी से वह केदारनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
कहा जाता है कि को भी मनुष्य केदारनाथ का संकल्प लेकर आए और उसकी मृत्यु रास्ते में हो जाए तो उसे दुबारा जन्म नहीं लेना पड़ता क्योंकि इस केदारनाथ धाम को मुक्ति धाम भी कहा जाता है क्योंकि इसी जगह पर पांचों पांडवो को भगवान शिवजी ने दर्शन देकर मुक्ति का मार्ग दिखाया था।।
केदारनाथ शिव के होने के प्रमाण अभी भी वहां मिलते है क्योंकि उस बैल के कूल्हे के रूप में ही शिवलिंग की आकृति केदारनाथ में है।
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